दुनिया का सबसे बड़ा कब्रिस्तान, 1400 सालों से दफनाए जा रहे हैं लोग, वजह है खास
Last Updated:May 13, 2025, 20:55 IST
इराक के नजफ शहर में स्थित वादी उस सलाम दुनिया का सबसे बड़ा कब्रिस्तान है, जहां 1400 सालों से लाखों लोगों को दफनाया गया है. शिया मुस्लिमों के पवित्र शहर के इस कब्रिस्तान में कई शिया मुसलमान दफन होना चाहेत हैं. म…और पढ़ें
वादी उस सलाम के बारे में कहा जाता है कि यहां बहुत बड़े और महान लोगों को कब्रे हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
हाइलाइट्स
- इराक के नजफ में वादी उस सलाम दुनिया का सबसे बड़ा कब्रिस्तान है
 - यहां 1400 सालों से लाखों लोगों को दफनाया गया है
 - शिया मुस्लिम मानते हैं कि सभी पवित्र आत्माएं यहां आती हैं
 
क्या आप दुनिया की सबसे बड़े कब्रिस्तान के बारे में जानते हैं. यह केवल एक कब्रिस्तान ही नहीं है. बल्कि एक तरह का अजूबा है. इराक के नजफ शहर इस्लाम का एक पवित्र शहर माना जाता है. यहां पर मौजूद एक कब्रिस्तान का नाम वादी उस सलाम, इसका मतलब शांति की घाटी होता है. लेकिन यह कब्रिस्तान का ही नाम है. इसे दुनिया का सबसे बड़ा कब्रिस्तान माना जाता है और इतना ही नहीं बताया जाता है कि यहां बीते 1400 सालों से लोगों को आज तक दफनाया जा रहा है जिसमें अब तक लाखों लोगों को दफनाया जा चुका है.
लाखों लोगों की है कब्रें
नजफ इराक का छोटा शहर नहीं है. 6 लाख की आबादी वाला यह शहर पवित्र माना जाता है. शहर से लगे कब्रिस्तान में लाखों लोग दफन हैं. और यह सब एक 10 किलोमीटर लंबी घाटी में है. यहां बीते 1400 सालों को दफनाया जा रहा है और ये सिलसिला कभी नही रुका है. यहां पर बड़ी खास हस्तियों की कब्रें बताई जाती है.
क्यों खास है ये कब्रिस्तान
इस कब्रिस्तान के खास होने की एक वजह है. कब्रिस्तान के बारे में शिया मुस्लिम मानते हैं कि सारी पवित्र आत्माएं चाहे उन्हें कहीं भी दफनया गया हो, आखिर में यहां यहीं आएंगी. बहुत से पैगम्बर, राजा, शहजादे, सुल्तान आदि की यहां कब्र है. इनमें पैगम्बर हुद, पैगम्बर सालेह, आयातुल्ला सैयद, मोहम्मद बशीर अल सदर और अली बिन तालिब आदि की कब्रें यहीं पर हैं.
बहुत से शिया मुसलमान चाहते हैं कि उन्हें यहीं दफनाया जाए. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
यहां दफन होना चाहते हैं
हैरानी की बात नहीं आसपास के इलाकों के कई लोग यहां दफनाए जाते होंगे यहां तक कि कई लोग दूसरे यहां कर आखिरी सांस लेना पसंद करते होंगे जिससे उन्हें मरने के बाद वादी उस सलाम में जगह मिल सके. इसमें पक्की ईंटों और प्लास्टर की कब्रें हैं. यहां तक कि कई कब्र कुछ मंजिला हैं.
अलग अलग तरह की कब्रें
कई अमीरों ने कब्रें अलग ही तरह की बना रखी हैं.  कुछ कब्रों को मजार या कमरे का आकार देकर उन पर गुंबद भी बनाया गया है तो वहीं कुछ कब्रों तक पहुंचने के लिए सीढ़ी से नीचे उतरना होता है. पुरानी कब्रें बहुत साधारण है, लेकिन 1930 और 1940 के दशक की कब्रों की अलग ही स्टाइल है. उनके ऊपर 10 फुट के गोलाकार सिरे हैं जहां से वे लोगों को पड़ोस की कब्रों से अलग दिख सकें.
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2003 में इसका अलग हुआ था इस्तेमाल
2003 में इराक युद्ध में इराकी लड़ाके यहां कई बार अपने हथियार छिपाया करते थे और इस कब्रिस्तान को छिपने और छिप कर हमला करने के लिए इस्तेमाल किया करते थे.  अमेरिकी इस इलाके में नहीं आ सकते थे  और यहां एक तरह की भूल भुलैया सी है इसलिए यहां तलाशी भी बहुत ही मुश्किल काम होता था.
2003 के दौर में ही इस कब्रिस्तान का विस्तार भी देखने को मिला उस दौर में इसका आकार 40 फीसदी बढ़ गया और तब से बढ़ते बढ़ते आज के 6 वर्ग किलोमीटर तक पहुंच गया. 2004 के बाद 2006-07 में शिया सुन्नी झगड़े के दौरान भी यहां बहुत ज्यादा लोग मारे गए थे. लेकिन हाल के कुछ सालों में इसका फैलाव कुछ रुका है.
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As an exclusive digital content Creator, specifically work in the area of Science and technology, with special interest in International affairs. A civil engineer by education, with vast experience of training…और पढ़ें
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Source – News18

