कहां मिला था ‘कोहिनूर’ हीरा, कौन था इसका पहला मालिक? जानते होंगे कम लोग


कोहिनूर हीरे का नाम आते ही लोगों को इस बात का अफसोस होने लगता है कि ये बेशकीमती हीरा भारत का था, जो अब इंग्लैंड में है. कोहिनूर का अपना इतिहास है, जिसका सफर काफी लंबा है. इसकी कहानी सिर्फ अंग्रेज़ों के हाथों भारत से इंग्लैंड की महारानी के मुकुट तक सजने की ही नहीं है. ये हीरा बहुत से मालिकों के हाथों से होते हुआ ब्रिटेन तक पहुंचा है. हालांकि इन तथ्यों के बारे में जानकारी कम ही लोगों को होगी.
दिलचस्प बात ये है कि इसे कभी किसी ने न तो बेचा और न ही ये खरीदा गया. ये हीरा तो वक्त-वक्त पर या तो किसी को ये तोहफे में दिया गया है या किसी जंग में जीता गया है. कोहिनूर हीरे के बारे में आपने इतिहास से लेकर खबरों में खूब सुना और पढ़ा होगा. क्या आपने सोचा है कि इसका असली मालिक कौन था? चलिए जानते हैं इस ऐतिहासिक हीरे के बारे में वो बातें, जो कम ही लोगों को पता होंगी.
कहां और किसे मिला था पहली बार ‘कोहिनूर’?
कोहिनूर हीरा कहीं और नहीं बल्कि भारत में पाया गया था. तकरीबन 800 साल पहले आंध्र प्रदेश के गुंटूर ज़िले में मौजूद गोलकुंडा की खदान में से ये नूरानी हीरा मिला था. इस नायाब हीरे का वज़न 186 कैरेट था. हालांकि इस हीरे को कई बार तराशा गया और इसका वज़न कम भी हुआ. बावजूद इसके आज भी कोहिनूर दुनिया का सबसे बड़ा तराशा हुआ हीरा माना जाता है. ज़मीन से महज 13 फीट की गहराई में मिले कोहिनूर के पहले मालिक काकतिय राजवंश थे. इस राजवंश ने इस बेशकीमती हीरे को अपनी कुलदेवी भद्रकाली की बाईं आंख में लगाया था.
कितने हाथों में गया, कहां-कहां पहुंचा?
14वीं सदी में अलाउद्दीन खिलजी ने इस हीरे को काकतिय से लूट लिया. पानीपत के युद्ध में मुगल शासक बाबर ने आगरा और दिल्ली किले को जीता और इस हीरे को भी हथिया लिया. इस हीरे पर फिर ईरानी शासक नादिर शाह का हक हो गया, जब उसने 1738 में मुगलों को हराया और अहमद शाह से हीरा छीन तक अपने साथ बाहर ले गया. नादिर शाह ने मयूर तख्त भी छीना था और हीरे को इसी में जड़वा दिया था. इस हीरे को कोहिनूर का नाम भी नादिर शाह ने ही दिया था, जिसका मतलब रोशनी का पर्वत होता है. जब नादिर शाह की हत्या के बाद उसके पोते शाहरुख मिर्ज़ा को हीरा मिला, तो उसने अफगानी शासक अहमद शाह दुर्रानी को तोहफे के तौर पर कोहिनूर सौंप दिया. हालांकि 1813 में महाराजा रणजीत सिंह ने सूजा शाह से हीरा लेकर इसकी भारत में वापसी कराई.
यूं पहुंच गया अंग्रेज़ों के पास
1849 में सिखों और अंग्रेज़ों के बीच दूसरा युद्ध हुआ. इस लड़ाई में सिखों का शासन खत्म हो गया. अंग्रेज़ों ने महाराजा गुलाब सिंह की सारी संपत्ति के साथ-साथ कोहिनूर भी ब्रिटेन में क्वीन विक्टोरिया को सौंप दिया. 1850 में ये बकिंघम पैलेस में पहली बार पहुंचा और डच फर्म कोस्टर ने इसे तराशकर रानी के ताज में जड़ दिया. कोहिनूर पर पाकिस्तान और अफगानिस्तान भी अपना दावा करते रहे हैं. फिलहाल ये हीरा लंदन में ही है और भारत की ओर से इसकी वापसी की कोशिशें जारी हैं.
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FIRST PUBLISHED : January 2, 2025, 08:41 IST
Source – News18

