अजब गजब: हाथी भी बनेंगे बिरयानी का हिस्सा! पक रहा है ‘एलीफैंट किचन’
Last Updated:June 03, 2025, 22:18 IST
जहां एक ओर दुनिया में वन्यजीवों को बचाने की मुहिमें चल रही हैं, वहीं जिम्बाब्वे में हाथी अब प्रोटीन मैनेजमेंट स्कीम का हिस्सा बन गए हैं. ये अजब है, गजब है और सोचने पर मजबूर करने वाला भी. अगली बार जब कोई कहे कि …और पढ़ें
जिम्बाब्वे में हाथियों को मारकर उनका मांस लोगों में बांटा जाएगा.
हाइलाइट्स
- जिम्बाब्वे में हाथियों का मांस बांटा जाएगा.
 - 50 हाथियों को मारकर मांस स्थानीय लोगों में बांटा जाएगा.
 - हाथी का मांस बीफ और पोर्क जैसा होता है.
 
दुनिया में अनोखी घटनाओं की कोई कमी नहीं है, लेकिन अफ्रीका के जिम्बाब्वे से आई ये खबर तो आपको को भी चौंका देगी! देश की सरकार ने ऐलान किया है कि अब हाथियों को मारा जाएगा और उनका मांस आम जनता में बांटा जाएगा. जी हां, आपने सही पढ़ा, अब हाथी सिर्फ जंगलों के राजा नहीं, जिम्बाब्वे के डिनर प्लेट पर भी जगह बनाने वाले हैं.
स्वाद में हाथी कैसा होता है?
अब आपके दिमाग में सवाल उठ रहा होगा कि हाथी का मांस कैसा लगता है? दुनियाभर में इसे खाना कानूनी और नैतिक विवादों से भरा मुद्दा है, लेकिन जहां यह खाया जाता है, वहां लोगों का कहना है कि इसका स्वाद बीफ और पोर्क जैसा होता है, लेकिन थोड़ा गेमी (जंगली) और हल्की मिठास लिए होता है. यह मांस होता रेशेदार होता है. धीमी आंच पर इसे पकाया जाता है. इसका मांस लो कोलेस्ट्रॉल और हाई प्रोटीन वाला होता है. इसमें भरपूर आयरन और बी-विटामिन्स होते हैं. यानी पोषण के पैमाने पर देखें तो हाथी भले ही भारी है, लेकिन डाइट के लिए लाइट है.
नहीं, बाकी चीजों की भी व्यवस्था है. सरकार ने कहा है कि हाथियों के दांत यानी आइवरी (हाथीदांत) राज्य की संपत्ति मानी जाएगी और इसे ZimParks को सौंप दिया जाएगा. लेकिन बेचना मना है, क्योंकि दुनिया में आइवरी ट्रेड पर बैन लगा हुआ है. यानी ये कीमती दांत अब सिर्फ सरकारी गोदामों की शोभा बढ़ाएंगे. साल 2024 में भी जब जिम्बाब्वे में भारी सूखा पड़ा था, तब 200 हाथियों को मारा गया था. वो पहली बार था जब 1988 के बाद इतनी बड़ी संख्या में हाथियों को शिकार बनाया गया.
और क्या है खास?
इस फैसले की तेज आलोचना भी हो रही है. वाइल्डलाइफ एक्टिविस्ट्स का कहना है कि हाथी सिर्फ ‘वन्यजीव’ नहीं बल्कि टूरिज्म के हीरो हैं. देश की इकोनॉमी का एक बड़ा हिस्सा इन्हीं पर टिका है. अब अगर ये भी ‘प्लेट’ पर पहुंचने लगे तो जंगल भी खाली होंगे और विदेशी सैलानी भी. हाथियों की संख्या कम करने के लिए पिछले 5 सालों में 200 को दूसरे नेशनल पार्क्स में शिफ्ट किया गया, लेकिन अब सरकार मान रही है कि यह उपाय काफी नहीं है. कड़ी निगरानी के बाद ‘कूलिंग ऑफ़’ यानी ‘कुल्हाड़ी का ऑपरेशन’ शुरू हो चुका है.
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Mr. Gyanendra Kumar Mishra is associated with hindi.news18.com. working on home page. He has 20 yrs of rich experience in journalism. He Started his career with Amar Ujala then worked for ‘Hindustan Times Group…और पढ़ें
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Source – News18

