रतलाम के इस मंदिर से रात में गायब हो जाते थे द्वारकाधीश, मिठाई की दुकान पर खुद लेने गए थे भोग, अद्भुत है कहानी

रतलाम. मध्‍य प्रदेश ही नहीं देशभर में स्वर्ण आभूषणों के लिए ख्यात द्वारिकाधीश मंदिर में दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं. यह मंदिर 300 साल से ज्यादा पुराना है. माना जाता है कि जो भक्त गुजरात के द्वारिकाधीश मंदिर नहीं पहुंच पाते वे यहां आकर भगवान के दर्शन करते हैं तो उनकी प्रार्थना स्वीकार होती है.

द्वारिकाधीश मंदिर के चमत्कारों को आज भी रतलाम के रहवासी बहुत विश्वास के साथ बताते हैं. इस मंदिर का निर्माण काशीराम पालीवाल द्वारा करवाया गया था. स्थानीय निवासियों के मुताबिक मंदिर में भगवान द्वारिकाधीश की प्रतिमा रात को गायब हो जाती थी. प्रभु की पूजा-अर्चना के बाद उनके शयन के लिए मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते थे, लेकिन सुबह उठकर देखते तो प्रतिमा गायब हो जाती थी. जब पता किया जाता तो मूर्ति उसी संत के पास मिलती थी, जहां से इसे लाया गया था.

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भगवान को बांधने का यह मिला दंड
काशीराम पालीवाल के सदस्य बताते हैं कि जब मूर्ति बार-बार गायब होने लगी और संत के पास पहुंच जाती तो काशीराम पालीवाल ने तय किया कि प्रतिमा को अभिमंत्रित करवाकर भगवान को यहीं रोका जाए. उन्होंने अभिमंत्रों के द्वारा भगवान की प्रतिमा को रोक दिया. इस बात से भगवान नाराज हो गए. उन्होंने काशीराम को श्राप दिया कि तुमने ऐसा कर तो दिया लेकिन इसका दंड मिलेगा. काशीराम को भगवान ने स्वप्न में कहा कि पांच पीढ़ी तक तुम्हारा वंश आगे नहीं बढ़ेगा. इस पर भक्त काशीराम ने श्राप को सहर्ष स्वीकार करते हुआ कहा कि आपका निर्णय मंजूर है, लेकिन हम यहीं आपकी सेवा करते रहेंगे. हुआ भी ऐसा ही. काशीराम पालीवाल परिवार में पांच पीढ़ी तक कोई वंशज नहीं हुआ. वर्षों बाद उनकी बेटी के परिवार में एक पुत्र ने जन्म लिया. इससे पहले गोदित बच्चे ही परिवार और मंदिर की सेवा करते रहे.

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जब भगवान खुद मिठाई की दुकान से भोग लेकर आए
रतलाम के इस मंदिर से जुड़ा एक और चमत्कार सुनने को मिलता है. भगवान द्वारिकाधीश को कलीराम बा की मिठाई दुकान से रोज पेड़े का भोग मंदिर जाता था. एक बार पेड़े का वह भोग मंदिर नहीं पहुंच सका तो भगवान ने वेष बदलकर मिठाई की दुकान से पेड़े ले लिए. जब दुकानदार ने उनसे पैसे मांगे तो उनके पास पैसे नहीं थे, लेकिन उन्होंने हलवाई को अपने सोने के कंगन दे दिए. यह बात स्वप्न में भगवान ने काशीराम पालीवाल को बताई. अगले दिन प्रतिमा से कंगन गायब होने से हड़कंप मच गया. तब काशीराम पालीवाल ने बताया कि भगवान के कंगन हलवाई कलीराम बा की दुकान पर मिलेंगे. लोग वहां पहुंचे तो कंगन हलवाई की दुकान पर मिल गए. इसके बाद से जब तक वह दुकान बंद नहीं हो गई तब तक भगवान के लिए भोग वहीं से मंदिर ले जाया जाता रहा.

सात द्वार के बाद स्थापित है प्रतिमा
स्वर्णनगरी रतलाम में भगवान द्वारिकाधीश की प्रतिमा ठीक उसी तरह स्थापित है जैसी गुजरात के द्वारिका मंदिर में. यहां भी द्वारिका की तरह भगवान के दर्शन करने के लिए सात द्वार पार करके जाना पड़ता है. भगवान के चमत्कारों पर आज भी लोग भरोसा करते हैं और कहते हैं यहां आकर मांगी गई मन्नत पूरी होती है.

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Source – News18